राष्ट्रीय युवा दिवस 2018 - 12 जनवरी (शुक्रवार)--

स्वामी  विवेकानन्द जन्म जयन्ती-12 जनवरी 2018 ...

प्रिय पाठकों.मित्रों, हमारे देश भारत में पूरे उत्साह और खुशी के साथ राष्ट्रीय युवा दिवस "युवा दिवस" या "स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस" के रूप में मनाया जाता है। पौष कृष्णा सप्तमी तिथि में वर्ष 1863 में 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था। स्वामी विवेकानंद का जन्म दिवस हर वर्ष रामकृष्ण मिशन के केन्द्रों पर, रामकृष्ण मठ और उनकी कई शाखा केन्द्रों पर भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाया जाता है,इसे आधुनिक भारत के निर्माता स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को याद करने के लिये मनाया जाता है। राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को मनाने के लिये वर्ष 1984 में भारतीय सरकार द्वारा इसे पहली बार घोषित किया गया था। तब से (1985), पूरे देश भर में राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में इसे मनाने की शुरुआत हुई। भारत में स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती, अर्थात १२ जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् १९८४ ई. को 'अन्तरराष्ट्रीय युवा वर्ष' घोषित किया गया। इसके महत्त्व का विचार करते हुए भारत सरकार ने घोषणा की कि सन १९८४ से 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानन्द जयन्ती का दिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में देशभर में सर्वत्र मनाया जाए।

इस सन्दर्भ में भारत सरकार का विचार था कि -

ऐसा अनुभव हुआ कि स्वामी जी का दर्शन एवं स्वामी जी के जीवन तथा कार्य के पश्चात निहित उनका आदर्श—यही भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता है।
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स्वामी विवेकानंद का जन्म और उनका परिवार एवं शिक्षा आदि---

नाम- स्वामी विवेकानंद (जन्म नाम- नरेन्द्रनाथ दत्ता)
जन्म- 12 जनवरी 1863 कलकत्ता
मृत्यु- 4 जुलाई 1902 (उम्र 39) बेलूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश राज (अब बेलूर, पश्चिम बंगाल में)
राष्ट्रीयता- भारतीय
संस्थापक- रामकृष्ण मिशन ( 1 मई, 1897   )
गुरु/शिक्षक - श्री रामकृष्ण परमहंस
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स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी,1863 में हुआ। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। दुर्गाचरण दत्ता, (नरेंद्र के दादा) संस्कृत और फारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने परिवार को 25 की उम्र में छोड़ दिया और एक साधु बन गए। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेंद्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक, प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में मदद की।

स्वामी विवेकानन्द के बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था।  वह बाल्यावस्था से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उनके घर में नियमपूर्वक प्रतिदिन पूजा-पाठ होता था। साथ ही नियमित रूप से भजन-कीर्तन भी होता रहता था। परिवार के धार्मिक वातावरण का उन पर भी प्रभाव गहरा पड़ा। वह वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने अपने गुरु से ही यह ज्ञान प्राप्त किया कि समस्त जीव स्वयं परमात्मा का ही अंश हैं, इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है।स्वामी विवेकानंद को पूरी दुनिया में उनके ज्ञान, वक्तृता और स्मरणशक्ति के लिए जाना जाता है लेकिन वो बीए की परीक्षा सेकंड डिविजन में पास हुए थे।दैवयोग से विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। अत्यन्त दर्रिद्रता में भी नरेन्द्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते।

कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं। इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उन्होंने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और मौजूदा स्थितियों का पहले ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कूच किया। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया, सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है। वे अध्यात्म की अतल गहराइयों में डुबकी लगाने वाले योग साधक थे तो व्यवहार में जीने वाले गुरु भी थे। वे प्रज्ञा के पारगामी थे तो विनम्रता की बेमिशाल नजीर भी थे। वे करुणा के सागर थे तो प्रखर समाज सुधारक भी थे। उनमें वक्तृता थी तो शालीनता भी। कृशता थी तो तेजस्विता भी। आभिजात्य मुस्कानों के निधान, अतीन्द्रिय चेतना के धनी, प्रकृति में निहित गूढ़ रहस्यों को अनावृत्त करने में सतत् संलग्न, समर्पण और पुरुषार्थ की मशाल, सादगी और सरलता से ओतप्रोत, स्वामी विवेकानन्द का समग्र जीवन स्वयं एक प्रयोगशाला था।
स्वामी विवेकानन्द की मेघा के दर्पण से वेदान्त, दर्शन, न्याय, तर्कशास्त्र, समाजशास्त्र, योग, विज्ञान, मनोविज्ञान आदि बहुआयामी पावन एवं उज्ज्वल बिम्ब उभरते रहे। वे अतुलनीय संपदाओं के धनी थे। वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य के एक उत्साही पाठक थे। इनकी वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि थी। उनको बचपन में भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया गया था और ये नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम में व खेलों में भाग लिया करते थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन किया। 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली।

रामकृष्ण परमहंस से संपर्क में आने के बाद नरेंद्रनाथ ने करीब 25 साल की उम्र में संन्यास ले लिया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के देहांत के बाद स्वामी विवेकानंद ने पूरे देश में रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। विवेकानंद को पूरी दुनिया में भारतीय दर्शन और वेदांत का सर्वप्रमुख विचारक और प्रचारक माना जाता है। महज 39 वर्ष की उम्र में चार जुलाई 1902 को उनका देहांत हो गया।

उल्लेखनीय है कि 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के कायस्थ परिवार में जन्मे स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर उसे सार्वभौमिक पहचान दिलाई। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उनके बारे में कहा था-"यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।"

स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस पर अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार वर्ष 1985 को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया।  पहली बार वर्ष 2000 में अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन आरंभ किया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने 17 दिसंबर 1999 को प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का अर्थ है कि सरकार युवा के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे। भारत में इसका प्रारंभ वर्ष 1985 से हुआ, जब सरकार ने स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस पर अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। युवा दिवस के रूप में स्वामी विवेकानन्द का जन्मदिवस चुनने के बारे में सरकार का विचार था कि स्वामी विवेकानन्द का दर्शन एवं उनका जीवन भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता है। इस दिन देश भर के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में कई प्रकार के कार्यक्रम होते हैं, रैलियां निकाली जाती हैं, विभिन्न प्रकार की स्पर्धाएं आयोजित की जाती है, व्याख्यान होते हैं तथा विवेकानन्द साहित्य की प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं।
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गुरु के प्रति निष्ठा---

एक बार किसी ने गुरुदेव की सेवा में घृणा और निष्क्रियता दिखायी तथा घृणा से नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर स्वामी विवेकानन्द को क्रोध आ गया। उस गुरु भाई को पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को वे समझ सके, स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। समग्र विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिक भंडार की महक फैला सके। उनके इस महान व्यक्तित्व की नींव में थी ऐसी गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा!
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